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Godham Pathmeda

Tuesday, April 3, 2012

गायों की रक्षा के लिए भक्त बने सेठ सांवरिया


नैनी बाई मायरा कथा का समापन 
बाड़मेर में नंदीशाला व गायों के अस्पताल के लिए प्रदेश के अन्य जिलों व पड़ोसी राज्यों से दानदाताओं ने की भूमिदान की घोषणा, दोनों हाथ खड़े कर भक्तों ने लिया गोसेवा का संकल्प 
बाड़मेर
शहर के वंृदावन धाम में गो सेवार्थ आयोजित नैनी बाई का मायरा कथा थार के गोवंश के लिए वरदान साबित हुई। बाड़मेर में पथमेड़ा गोधाम की ओर से नंदीशाला व गोवंश के उपचारार्थ अस्पताल खोलने के लिए एक बीघा भूमिदान व गोग्रास के लिए शहर के दानदाताओं के साथ संस्कार चैनल पर हो रहे लाइव प्रसारण के माध्यम से प्रदेश के जयपुर व पड़ोसी राज्यों से दानदाताओं ने ऑनलाइन भूमि दान की घोषणा कर कथा को सार्थक कर दिया। 

वंृदावन धाम में मंगलवार को नैनी बाई रो मायरो कथा का वाचन करते हुए राधाकृष्ण महाराज ने कहा कि नरसिंह मेहता जब बेटी के ससुराल में भोजन के दौरान तिरस्कार करने के बावजूद भगवान ने पांच पकवान थाली में लाने का वृतांत सुन कई भक्तों की आंखें नम हो गईं। इससे पूर्व गो ऋषि दतशरणानंद महाराज पथमेड़ा ने उपस्थित भक्तों को गौ माता की सेवा करने का संकल्प दिलाया। उन्होंने कहा बिना दूध देने वाली गाय की सेवा करना ही परमधर्म है। बिना इच्छा के सेवा करने से सब कुछ मिलता है। इस मौके पर पूर्व विधायक हरी सिंह सोढ़ा ने गाय सेवा का संकल्प लेते हुए व्यास पीठ से आशीर्वाद लिया। 

नंदीशाला खोलने पर सहमति जताई : कार्यकर्ताओं की बैठक में पथमेड़ा धाम के गो ऋषि दतशरणानंद ने बाड़मेर में गायों के लिए अस्पताल और नंदीशाला खोलने की आवश्यकता जताई जिस पर कार्यकर्ताओं ने सहमति जताई। इसके लिए भामाशाह ओमप्रकाश मूथा, मांगीलाल शर्मा, बंशीलाल गर्ग, अमरचंद, आलोक सिंहल, जितेंद्र बंसल और रेखाराम बंसल ने आजीवन ट्रस्टी बनने की सहमति दी। उन्होंने गौ अस्पताल और नंदीशाला खोलने का संकल्प लिया। वहीं एकादशी पर सद्कार्य करने का संकल्प कथावाचक राधाकृष्ण महाराज ने प्रतिदिन प्रभातफेरी में जाने के निर्णय के साथ दिलाया। 

गौ ग्रास हुंडी भरने उमड़े श्रद्धालु : आयोजन समिति के मीडिया प्रभारी ओम जोशी ने बताया कि नैनी बाई रो मायरा भरने के लिए गौ ग्रास की हुंडी भरने के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े। पथमेड़ा के गौ भक्त चंपालाल चौधरी ने श्रद्धालुओं को गौ माता के लिए दान पुण्य करने को प्रेरित किया। श्रद्धालुओं ने नकद राशि के अलावा गौ माता के अस्पताल के लिए भूमि दान करने की घोषणा भी की। 

संतों का रहा सान्निध्य 
कथा के दौरान स्वामी प्रतापपुरी तारातरा मठ, रामद्वारा के रामस्वरूप शास्त्री, सिणधरी के रुघनाथ भारती और गंगागिरी मठ के खुशाल गिरी का सान्निध्य रहा।इससे पूर्व दैनिक यजमान अमरचंद सिंहल, फरसाराम मोहन गोयल, सत्यनारायण परिवार ने व्यास पीठ से आशीर्वाद लिया। भामाशाह खेराज राम, तुलसाराम प्रजापत, ओमप्रकाश, घनश्यामदास मुथा, मदनलाल, जयप्रकाश सिंहल ने कथावाचक का माल्यार्पण किया। प्रवक्ता हनुमानराम डऊकिया ने बताया कि समारोह में कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया।संचालन जानकी प्रसाद गुप्ता ने किया। 

Wednesday, January 19, 2011

गोवंश को बचाने के लिए आगे आएं- दत्तशरणानंद महाराज

भास्कर न्यूज. चैन्नई।
निराश्रित गोवंश को बचाने के लिए हम आगे आए। गोसेवा एवं गोसंवर्धन करे। गोभूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराए तथा पर्यावरण की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे। गोधाम पथमेड़ा प्रधान संरक्षक एवं संस्थापक स्वामी दत्तशरणानंद महाराज ने यह बात कही। वे चैन्नई महानगर में गोकथा महोत्सव के दौरान उपस्थित गोभक्तों को उदबोधन दे रहे थे। गोकथा महोत्सव 12 जनवरी से शुरू होकर 16 जनवरी को सम्पन्न हुआ। कामधेनू कल्याण परिवार तमिलनाडू चैन्नई के तत्वावधान में आयोजित कथा में उन्होंनें कहा कि आज गोवशं कमाई के लिए कत्लखाने ले जाई जा रही है। गोभक्त आज आवारा हो गया है। इसलिये गाय बैचारा हो गई है। सारे प्राणियों में गोमाता पवित्र है। सबको जोडऩे वाली गोमाता की हम उपेक्षा कर रहे है। चैन्नई महानगर के वैपेरी उपनगर के ईवीके सम्पत्त रोड़ पर चुलै बस स्टेण्ड़ के पास पीटीसी चैंगलवाराय नाईकन ट्रस्ट में आयोजित कथा स्थल पर उन्होंने गो प्रेमियों से आह्वान किया कि हम भोजन से पहले गोग्रास अवश्य निकाले। गो से प्राप्त वस्तुओं का सेवन करे तथा गो गव्यों का उपयोग अधिक से अधिक करे। उन्होंनें गोमाता की महिमा को बड़े ही तार्किक एवं सरल रूप में समझाते हुए कहा कि जीवन में सम्पूर्ण शांतिमय यात्रा करनी हो तो गोमाता की सेवा अवश्य करनी चाहिए। गाय सभी को आनंद एवं शांति देती है। गाय को साक्षात भगवान का रूप बताया गया है। हम गाय की महिमा भूल गए है। गो माता के गुणगान को गोविंद की महिमा दी गई है।
मकर सक्रांति के पूण्य पर्व के मौके पर निराश्रित लाखों गोवंश के सेवार्थ एवं संरक्षणार्थ यहां आयोजित महोत्सव स्थल पर दत्तशरणानंद महाराज ने कहा कि सबका पालन पोषण गोमाता करती है। बौद्धिक एवं आध्यात्मिकता से भी गोमाता का अनंत उपकार है। गाय का स्थान बहुत ऊंचा है, लेकिन विडबंना है कि आज गोवंश दुखी है। संसार में भगवान से भी गाय का स्थान है। जन्म देने वाली माता से भी कई गुणा ऊंचा स्थान गाय को दिया गया है। गोमाता की अंनत शक्ति है। पवित्रता व शांति देती है। गाय से अधिक समरस कोई नही है। गोमाता सभी मजहबों व सम्प्रदायों से ऊपर है। गाय भारत का विराट रूप है। जहां सम्पूर्ण ब्रह्मांड को पोषण करने वाली गाय माता है।
भारत का मूल आधार गाय :-
जीतों प्रेरक गणिवर्य नयपदमसागर महाराज ने कहा कि भारत वर्ष का मूल आधार गाय है। इसकी जितनी सेवा की जाए कम है। उन्होंनें कहा कि यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि गाय कत्लखाने जाती है। सारे प्राणियों की माता गाय है। नयपदमसागर महाराज ने कहा कि भारत भूमि महावीर, राम एवं कृष्ण की भूमि है। सभी कथाओं में गोकथा सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंनें कहा कि मजहब एवं रंग अलग हो सकते है, लेकिन धर्म एक है। भारत में गो बचाने के लिए पवित्र आंदोलन करना पड़ेगा। समग्र राष्ट्र में गोवंश को कत्लखाने से बचाने के लिए अतिशीघ्र मास्टर प्लॉन बनाया जा रहा है। जिसमें प्रवासी एवं आप्रवासी गोभक्तों सहित दानदाताओं का सहयोग लेकर इस नेक कार्य को अतिशीघ्र शुरू किया जाएगा। गो वेज्ञानिक उत्तम महाश्वेरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
योग शिविर भी सम्पन्न :-
गोकथा महोत्सव के साथ योग शिविर भी सम्पन्न हो गया। प्रतिदिन सुबह महंत योगी सूरजनाथ महाराज पांचला सिद्धा जिला नागोर ने योग के माध्यम से लोगों को स्वस्थ रहने की प्रेरणा दी। उन्होंनें योग की महत्ता पर प्रकाश डाला और योगासन करवााए। उन्होंने सही तरीके से आसन करने के तरीके भी बताए। महोत्सव के शुरूआत के दो दिनों तक बाल व्यास राधाकृष्ण महाराज ने नरसीजी की हुंडी में ज्ञान की गंगा बहाई।
जांगीड़ ने लिया आशीर्वाद :-
इस अवसर पर महंत योगी सूरजनाथ महाराज, दीनदयाल महाराज, गोविंदवल्लभ ब्रह्मचारी, महंत रघुनाथभारती, मातृशक्ति गोशाला रेण के संस्थापक हरेकृष्ण हरेराम महाराज समेत अन्य संत-महात्मा उपस्थित थे। चैन्नई उपनगर इलाके के पुलिस आयुक्त एवं अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सांगाराम जांगीड़ जिला बाड़मेर ने भी महोत्सव स्थल पर संतो से आशीर्वाद प्राप्त किया। हिंदू मुन्नानी के संस्थापक रामगोपालन, विधायक बाबु, काऊंसलर मूरली, एमसी देवराजन, जयरामण के साथ भी तमिलनाडू प्रदेश के मिडीया जगत की कई हस्तियों ने भी भाग लिया।
पंच गव्य औषधिया खरीदी :-
महोत्सव स्थल पर पथमेड़ा गोशाला स्थल में निर्मित सामग्री खरीदने के प्रति भी भक्तों का उत्साह देखने को मिला। भक्तों ने पंच गव्य औषधियों जिनमे गोमूत्र अर्क, गोमूत्र आशव, गोतीर्थ कामधेनू कैंसर योग, बालपास रस, प्रमेहारी, नारी संजीवनी, कामधेनू धनवटी, कामधेनू सैंपू, अमृतधारा सहित अन्य पंच गव्य औषधियां खरीदने के प्रति रूची दिखाई।
विभिन्न स्थानों से पहुंचे भक्तगण :-
गोकथा सुनने के लिए चैन्नई के साहुकारपेट, चुलै, वेपैरी, एमके बी नगर, तंडियारपेट, तिरूवतियुर, मनड़ी समेत विभिन्न इलाकों से भक्तगण पहुंचे। चैन्नई के अलावा बैंगलूर, हैदराबाद, अहमदाबाद, अंकलेश्वर, सूरत, मदूरे, सैलम, कौयम्बतूर, तिरूची एवं राजस्थान के विभिन्न इलाकों से भी भक्तगण यहां पहुंचे और कथा का श्रवण किया। गोभक्तों के लिए कथा स्थल पर पहुंचने के लिए बसों की विशेष व्यवस्था की गई थी। चुलै हन्टर्स रोड़ पर मलैचा गार्डन में महाप्रसादी का आयोजन रखा गया, जिसमें सभी भक्तों ने उत्साह से भाग लिया।
कृष्ण के दर्शन गाय से ही :-
गोक्रांति अग्रदूत श्री गोपालमीणी महाराज ने गोकथा के दौरान कहा कि गोविंद एवं कृष्ण के दर्शन गाय से ही होते है। हर मनुष्य गाय को पाले, यदि न भी पाल सके तो उसे ह्द्रय में बसा ले। गाय का कार्य करने से ही हमे राम एवं कृष्ण मिलते है। उन्होंने कहा कि गाय की दिशा से ऋषियों को दिशा मिलती है। मनुष्य को गोदान करना चाहिए। जो गाय का बन जाता है वही गुरू का शिष्य बन जाता है। इस अवसर पर गोभक्तों ने कथा के दौरान हाथ उठाकर गोसेवा एवं गोसंवर्धन का संकल्प लिया। श्री गोपालमणी महाराज ने व्यसन मुक्ति पर बल दिया और कहा कि देश की स्थापना गौऋषियों से हुई है, लेकिन आज विडंबना यह है कि इस देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथ में है, जो गाय की रक्षा सही तरीके से नही कर पा रही है।
कार्यक्रम का संचालन ओम आचार्य के द्वारा किया गया। इस महोत्सव का पांच दिन तक समग्र विश्व में दिशा चैनल के द्वारा सीधा प्रसारण किया गया। गोभक्तों ने गो सेवा के लिए मुक्त हस्त से धन का दान भी दिया। गोधाम प्रचार विभाग के राव गुमानसिंह रानीवाड़ा एवं गणपत सुथार ने भी विशेष सहयोग प्रदान किया। सूरत से आए गो भक्त अर्जुनसिंह राजपुरोहित, जगदीश परिहार सहित श्रवणसिंह राव ने भी सहयोग प्रदान किया।

Wednesday, March 3, 2010

श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा


आनंदवन पथमेड़ा भारत देश की वह पावन व मनोरम भूमि हैं जिसे भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र सें द्वारका जाते समय श्रावण भादों माह में रुक कर वृंदावन से लायी हुई भूमंड़ल की सर्वाधिक दुधारु जुझारु साहसी शौर्यवान सौम्यवान गायों के चरने व विचरनें के लिए चुना था। यह आनंदवन मारवाड़ काठियावाड़ व थारपारकर की गोपालन लोक सन्स्कृति का ललित संयोग हैं।साथ ही भूगर्भ से बह रही पावन सरस्वती व कच्छ के रण में फैली हुई सिंधु तथा धरा पर बहने वाली सावित्री नदी द्वारा जन्म-जन्म के पापों का शमन करनें वाले श्री कृष्ण कामधेनु एवं कल्पगुरु दत्तात्रेय की आराधना का परम पावन त्रिवेणी संगम स्थल हैं। गत १२ शताब्दियों से कामधेनू कपिला व सुरभि की संतान गोवंश पर होनेवाले अत्याचारों को रोकने के लिए सन १९९३ में राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेवा अभियान का प्रारम्भ इसी स्थान से हुआ हैं।
जिसके तहत सर्वप्रथम श्री गोपाल गोवर्धन गौशाला गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा की स्थापना एवं गोसेवा कार्यकारिणी का गठन करके उसमें संपूर्ण हिंदुऒं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चत किया हैं। इसके बाद गोधाम महातीर्थ के दिशा-निर्देश में पश्चिमी राजस्थान एवं गुजरात के विभिन्न क्षेत्रो में गोसेवा आश्रमों व गो सरंक्षण केन्द्रों तथा गो सेवा शिविरों की स्थापना करना प्रारम्भ किया गया। इस अभियान द्वारा गोपालक किसानों एवं धर्मात्मा सज्जनों के माध्यम से गोग्रास संग्रहण करके गोसेवा आश्रमों में आश्रित गोवंश के पालन हेतु पहुँचाना प्रारम्भ किया गया। उपरोक्त अभियान के प्रथम चरण में क्रुर कसाइयों के चंगुल से तथा भयंकर अकाळ की पीड़ा से पीड़ीत लाखों गोवंश के प्राणों को सरंक्षण मिला हैं।
गोधाम महातीर्थ की स्थापना से लेकर आज तक गत १२ वर्षो में हमारे द्वारा स्थापित एवं संचालित विभिन्न गोसेवाश्रमो में आश्रय पाने वाले गोवंश की संख्या क्रमंश- इस प्रकार रही हैं। सन १९९३ में ८ गाय से शुभारंभ सन १९९९ में ९०००० गोवंश व सनॄ २००० में ९०७०० व सनॄ २००१ में १२६००० व सनॄ २००३ में २७८००० गोवंश व सनॄ २००४ में ५४००० गोवंश व सनॄ २००५ में ९७००० गोवंश रहा हैं। तथा मई २००७ तक १२०००० हो गई है। महातीर्थ के संस्थापक संत श्री दत्तशरणानंद महाराज का इस वर्ष २००७ का चातुर्मास खेतेश्वर गोसेवाश्रम खिरोड़ी में चल रहा है।

Tuesday, March 2, 2010

गौशाला-गाय गाँव -स्वालम्बन

भारतीय संस्कृति में कृषि व गौपालन का अति उत्तम स्थान रहा है। एक दो 
नहीं लाखों करोड़ों गाँव वाले इस देश में दूध दही की नदियाँ बहती थी। हर 
परिवार की कन्या दुहिता यानी दुहने वाली कहलाई । ब्रह्म मुहूर्त में उठते 
ही गृहनीयाँ झूमती हुई दही बिलोती और माखन मिश्री खिलाती थीं व अन्न्दा 
सुखदा गौमाता के लिए भोजन से पहले गौग्रास निकालना धर्म का अंग था। 
तेरहवी सदी में मक्रोपोलो ने लिखा की भारतवर्ष में बैल हाथिओं जैसे 
विशालकाय होते हैं, उनकी मेहनत से खेती होती है, व्यापारी उनकी पीठ पर 
फसल लाद कर व्यापार के लिए ले जाते हैं। पवित्र गौबर से आँगन लीपते हैं 
और उस शुद्ध स्थान पर बैठ कर प्रभु आराधना करते हैं। "कृषि गौरक्ष्य 
वाणीज्यम" के संगम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूर्णता, स्थिरता, व्यापकता 
वः प्रतिष्ठा दी जिसके चलते भारत की खोज करते कोलंबस आया. व सं १४०२ में 
भारत से कल्पतरु (गन्ना) और कामधेनु (गाय) लेकर गया. माना जाता है की 
इनकी संतति से अमरीका इंग्लैंड डेनमार्क आस्ट्रेलिया न्युजीलैंड सहीत 
समस्त साझा बाज़ारके नौ देशों में गौधन बढा . वोह देश सम्पन्न हुए और सोने 
की चिडिया लुट गयी. अंग्रेजी सरकार ने फ़ुट डालने के लिए गौकशी का सहारा 
लिया और चरागाह सम्बन्धी नाना कर लगाये गाय बैलों को उनकी गौचर भूमि पर 
भी चरना कठिन कर दिया . 
स्वतंत्रता संग्राम के सभी सेनानियों ने गौरक्षा के पक्ष में आवाज उठाई . 
आजादी की लड़ाई दो बैलों की जोडी ने लड़ी. उसके बाद में भी देश की बागडोर 
गाय और बछड़े ने संभाली. महत्मा गाँधी जी के शब्दों में " गौरक्षा का 
प्रश्न स्वराज्य से भी बड़ा " कहा गया. स्वतंत्र भारत के संविधान 
निर्माताओं ने मूलभूत अधिकार ५१-a और निर्देशक सिधांत ४८-a में पृकृति को 
ऑउर्ण सुरक्षा व राज्य सरकारों को कृषि और पशुपालन को आदुनिक ढंग से 
संवर्द्धित व विशेषत: गाय बछड़े एवम दुधारू व खेती के लिए उपयोगी पशुओं की 
सुरक्षा का निर्देश दिया 
आज का द्रश्य बिल्कुल विपरीत है। 
अनुपयोगी पशुओं के नाम पर उपयोगी पशुओ का निर्मम यातायात व अवैधानिक कत्ल 
देश के हर कोने में हो रहा है । तात्कालिक लाभ के लिए देश की वास्तविक 
पूंजी को नष्ट किया जा रहा है । गाँव, नगर, जिला राज्य या देश की 
आवश्यकता ही नहीं, विदेशी गौमांस की जरूरतें मूक पशुओं की निर्मम हत्या 
कर पूरी की जा रही हैं. मुम्बई का देवनार आन्ध्र का अल कबीर या केरला का 
केम्पको यांत्रिक कसाई खानों का जाल प्रति वर्ष लाखों प्राणियों का संहार 
कर रहा है . 
मांस का उत्पादन ही नहीं वरन विभिन्न यांत्रिक उपयोगों ने, रासायनिक खाद 
प्रयोगों ने ग्राम शहरीकरण व विदेशी चालचलन ने इन मूक प्राणियों को 
ग्रामीण विकास, अर्थव्यवस्था व रोजगार से दूर कर दिया है. आज रहट की जगह 
नलकूप, हल की जगह ट्रेक्टर, कोल्हू की जगह एक्सपेलर, बैलगाडी के स्थान पर 
टेंपो, उपलों की जगह गैस, प्राकृतिक खाद की जगह रासायनिक खाद आदि ले चुकी 
हैं। इस प्रदूषण और प्राणी हनन के परिणाम आज असहनीय हो चुके हैं. हमारा 
नित्य आहार रासायनिक हो विषयुक्त हो चूका है . कृषि की लागत कई गुना बढ़ 
चुकी है. गाँव में रोजगार के अवसर निरंतर घट रहे हैं. पर्यावरण दूषित हो 
रहा है. कीमती विदेशी मुद्रा खनिज तेल व रासायनिक खाद के आयात में 
बेदर्दी से खर्च हो रही है . कभी २ डालर(८५/-) प्रति बैरल का तेल आज १४० 
डालर (रु. ६,०००/-) बोला जा रहा है और जल्द २०० डालर ८,४००/- हो सकता है 
स्त्री शक्ति पशु पालन का अभिन्न अंग है। मूक पशु के निर्मम संहार ने 
इसके उत्थान को रोक लगा दी है। आज जगह जगह अन्नदाता कृषक आत्महत्या करने 
पर मजबूर है । 
भारतवर्ष की लगभग ४८ करोड़ एकड़ कृषि योग्य भूमि तथा १५ करोड़ ८० लाख 
एकड़ बंजर भूमि के लिए ३४० करोड़ टन खाद की आवश्यकता आंकी गई है। जबकि 
अकेला पशुधन वर्ष में १०० करोड़ टन प्राकृतिक खाद देने में सक्षम है । 
उपरोक्त भूमि को जोतने के लिए ५ करोड़ बैल जोड़ीयों की आवश्यकता खेती, 
सिचाई, गुडाई परिवहन, भारवहन, के लिए है. इतनी पशु शक्ति आज भी हमारे देश 
में प्रभु कृपा से बची हुयी है. उपरोक्त कार्यों में इसका उपयोग कर के ही 
कृषि तथा ग्रामीण जीवन यापन की लागत को कम किया जा सकता है. प्राकृतिक 
खाद, गौमुत्र द्वारा निर्मित कीट नियंत्रक व औषधियों के प्रचलन और उपयोग 
से रसायनरहित पोष्टिक व नैसर्गिक आहार द्वारा मानव जाति को दिघ्र आयु 
कामना की जासकती है .देश की लगभग ५,००० छोटी बड़ी गौशालाओं के कंधे पर 
बड़ा दायित्व है. अहिंसा, प्राणी रक्षा तथा सेवा में रत्त यह संस्थाएं 
हमारी संस्कृति की धरोहर हैं जो विभिन्न अनुदानों व सामाजिक सहायता पर 
निर्भर चल रही हैं. अहिंसक समाज का अरबों रुपिया देश में इन गौशालाओं के 
संचालन पर प्राणी दया के लिए खर्च हो रहा है. समय की पुकार है की बची हुई 
पशु सम्पदा के निर्मम हनन को रोका जाये और पशु धन की आर्थिक उपयोगिता 
सिद्ध की जाये. 
आमजन के मानस में मूक प्राणी के केवल दो उपयोग आते हैं. दूध व मांस यानी 
गौपालक गाय की उपयोगिता व कीमत उसकी दुग्ध क्षमता पर आंकता है और जब की 
कसाई उपलब्ध मांस हड्डी खून खाल आदि नापता है. गौपालक को प्रति प्राणी 
प्रति दिन रु.१५-२० खर्च ज्कारना होता है और येही २५०-३०० किलो की गाय या 
बैल लगभग २-३,००० में कसाई को मिल जाता है जब तक यह गाय दुधारू होती है 
गौपालक पालन करता है अन्यथा कसाई के हाथों में थमा देता है. पशु शक्ति, 
गोबर, गौमुत्र की आय या उपयोगिता का कई हिसाब ही नहीं लगाया जाता है. जो 
जानवर २-३,००० में ख़रीदा गया, २-३ दिनों में कत्ल कर रु.१००/- प्रति 
किलो २०० किलो गोमांस, चमडा रु.१,०००/- १५-२० किलो हड्डियाँ रु. २०/- 
प्रति किलो से और १२ लीटर खून दवाई उत्पादकों यो गैरकानूनी दारू बनाने 
वालों को बेच दिया जाता है. प्रति प्राणी औसतन २०-२५,००० का व्यापार हो 
जाता है. प्रति वर्ष अनुमानत: ७.५ करोड़ पशुधन का अन्तिम व्यापार रु. 
१८७५ अरब का आंका जासकता है . इस व्यापार पर कोई सरकारी कर या रूकावट 
नहीं देखने में आती है. गौशालाएं दान से और कसाई खाने विभिन्न 
नगरपालिकाओं द्वारा करदाताओं के पैसे से बना कर दिए जाते है। 
                                   कानून की धज्जियाँ उड़ते देखने को 
आइये आपको इस पूर्ण कार्य का भ्रमण कराते है. 
इस अपराध की शुरुआत सरकारी कृषि विपन्न मंडियों से होती देखी जासकती है. 
मंडीकर की चौरी के साथ में विपन्न धरो का साफ उलंघन यहाँ देखा जा सकता 
है. पशु चिकत्सा व पशु संवर्धन विभाग के अधिकारियो से हाथ मिला कर कानून 
के विपरीत पशु स्वास्थ्य प्रमाणपत्र के अंदर, वहां नियंत्रक, नाका 
अधिकारियों को नमस्ते कर, पुलिस को क्षेत्रिय राजनीतिज्ञों की ताकत 
प्रयोग में ला कर मूक प्राणी एक गाँव से दुसरे गाँव, शहर, तालुक जिला तथा 
राज्य सीमा पार करा कसाईखाने तक पहुंचा दिए जाते है.. इन सरकारी या गैर 
कानूनी कसयिखानो पर भी माफियों का एकछत्र राज देखा जासकता है. स्वास्थ्य, 
क्रूरता निवारण, पशु वध निषेध आदि बिसीओं कानूनों की धज्जिँ उडाते हुए 
बिना किसी चिकित्सक निरक्षण के विभिन्न रोगों ग्रस्त मांस जनता की 
जानकारी के बिना परोसा जा रहा है 
ऐसी विषम स्तिथि में केन्द्र, राज्य सरकार के विभिन्न विभागों की और 
गौशालाओ की जवाबदारी असीम हो जाती है। प्रथमत: गौशालाएं जिनका भूतकाल में 
बीमार, अपंग, निश्हाय, वृद्ध, गोवंश का पालन करना होता था परन्तु इस समय 
गोवंश की उपयोगिता सिद्ध कर गौपालक को गौपालन में प्रेरित करना तथा विभिन 
गौजनित पदार्थों के अनुसंधान, निर्माण, प्रचार की जिम्मेदारी संभालना 
होगी. नयसर्गिकखाद , कीट नियंत्रक, समाधीखाद, सींगखाद, प्रसाधन सामग्री 
साबुन, धुप अगरबती, कीटनियंत्रककॉयल, फिनायल, दवाईयां, रंग रोगन, 
फर्शटाइल, ज्वलनगैस, तथा पशु शक्ति के जल निकासन, विद्युत उत्पादन, 
परिवहन व भारवाहन के साथ कृषि के विभिन्न आयामों में प्रयोग की 
प्रयोगशाला तथा शिक्षाशाला के रूप में कार्य करना होगा इन सभी आयामों का 
उपयोग कर गौशालाओं को आर्थिक स्वालंबन की और कदम गौपालक का भी सही मार्ग 
दर्शन कर सकेंगे. गौशालाएं अधिक से अधिक मूक प्रनिओं की सेवा कर सकेंगी. 
इन आदर्श गौशालाओं के मार्ग दर्शन में आसपास के क्षेत्रों में पशु आधारित 
उद्योगों की संरचना स्वरोजगार व कृषि लागत घटाने में मील का पत्थर साबित 
होगी. 
ग्रामीण स्वरोजगार आज देश की ज्वलंत आवश्यकता है। इसका एक साधन गौवंश 
आधारित उद्योग ही हो सकते हैं। ग्राम को इकाई मान, ग्राम की गोवंशसंख्या 
का अनुमान लगा गोवंश शक्ति का उपयोग पेयजल, विद्दुत, पिसाई, कृषि, 
परिवहन, भारवहन, तिलहन पेराई आदि में, गौबर गौमुत्र बायो गेस बनाने, खाद, 
नियंत्रक व विभिन्न उपरोक्त उद्योगों की स्थापना करना होगा। स्त्री शक्ति 
इस कार्य में रूचि लेकर गौमाता की रक्षा व अपने आत्मसम्मान का उत्कर्ष कर 
सकेगी। गोवंश नस्लसुधार कर गौपालक को अच्छी नस्ल के दुधारू पशु उपलब्ध 
करवाना भी आदर्श गौशाला का उद्देश्य रखना होगा। मुझे पूर्ण विश्वास है की 
अगर गौशालाएं यह सभी कार्य हाथ में लें और राजकीय तंत्र सहायक योजनाओं का 
निर्माण व संचालन करे, भारतीय संविधान की भावना, विभिन्न विधि विधान पालन 
का निर्धारण करे तो गौवंशशक्ति उपयोग तथा गोमय उत्पादन से स्त्रीशक्ति, 
युवाशक्ति व गौवंश की रक्षा हो सकेगी। डॉ .श्रीकृष्ण मित्तल 
B.com (Hons) LLM, PHD 
सदस्य: इनचार्ज:कर्णाटक केरल संभागीय समिति 
भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड(२००७) 
वन तथा पर्यावरण मंत्रालय , भारत सरकार 
सदस्य : केरल राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड केरल सरकार 
उपाध्यक्ष: प्राणी दया संघ मैसूर (अस पी सी ऐ) 
अध्यक्ष :अखिल कर्णाटक गौरक्षा संघ (प) 

Tuesday, December 2, 2008

सजने लगी गोशाला


सांचौर।गोधाम पथमेडा में पांच दिसम्बर को शुरू होने वाले राष्ट्रीय कामधेनु कल्याण महोत्सव के लिए पांडाल सजाया जा रहा है। पार्किग स्थल, अतिथि आवास, मातृशक्ति आवास, अन्नपूर्णा भण्डार और राम रसोई के लिए अलग-अलग शामियाने लगाए जा रहे हैं। महोत्सव में आने वाले साधु-संतों के लिए संतकुटीर का निर्माण किया जा रहा है। गोधाम पथमेडा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व महामंत्री पूनम राजपुरोहित ने बताया कि महोत्सव से पांच से 12 दिसम्बर तक चलेगा।

माहोत्सव में प्रतिदिन सुबह 6 से 7 बजे तक प्रार्थना एवं ध्यान, सात से साढे नौ बजे तक गोपुष्टि महायज्ञ व गोधाम की परिक्रमा, आठ से दस बजे तक गौ भण्डारा, ग्यारह से दोपहर तीन बजे तक श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ, चार बजे से शाम साढे पांच बजे तक विभिन्न वर्गानुसार प्रतिदिन संगोष्ठियां तथा रात सात से दस बजे तक गोचारण रासलीला होगी। छह को किसान, सात को मातृशक्ति, आठ को संतगणो, नौ को विघिवेत्ताओं, 10 को व्यापारियों तथा 11 को शिक्षकों की संगोष्ठी होगी। 12 को राजस्थान गोरक्षा सम्मेलन का होगा। 

Sunday, September 14, 2008

गोमाता को बचाओ

सांचौर,राजस्थान गोरक्षा समिति के तत्वावधान में गोभक्तों ने प्रदेश के समस्त अनाश्रित गोवंश को बचाने के लिए चार सूत्रीय मांगों को लेकर मंगलवार को मुख्यमंत्री के नाम तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा।ज्ञापन में बताया कि गोवंश की हत्या बंद कर उसे राज्य प्राणी घोषित किया जाना चाहिए। बीमार, वृद्ध, निराश्रित असहाय एवं कत्लखाने ले जाते समय पकड़ में आने वाले गोवंश को आश्रय देने वाली गोशालाओं को स्थायी अनुदान उपलब्ध कराने, कांकरेज, थारपारकार, राठ व रेडी गोवंश के संवर्धन के लिए उन्नत नंदीशालाओं की स्थापना करने, गोचर, ओरण, तालाब एवं चारागाहों को आबाद करके सीमांकित करने तथा उन्हें गोचारण तथा गोपालन के लिए विकसित करने समेत कई मांगों को लेकर गोभक्तों ने ज्ञापन दिया।ज्ञापन देने में गोधाम पथमेड़ा के ज्ञानानंद महाराज, रविचरण महाराज, गोधाम पथमेड़ा के राष्ट्रीय महामंत्री पूनम राजपुरोहित, पं. पुखराज द्विवेदी, पार्षद भागीरथ व्यास, गोधाम के पूर्व अघ्यक्ष मनरूपसिंह राव, भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के नगर अघ्यक्ष हरीश पुरोहित समेत कई जने मौजूद रहे।रैली निकालीगोवंश बचाने के लिए चार सूत्री मांग को लेकर गोभक्तों ने मंगलवार को नगर में रैली निकाली। रैली में गोभक्त ने गो हत्या बंद करने, जो गो रक्षा की बात करेगा वही देश पर राज करेगा, गो हत्यारों को फांसी दो के नारे लगाए। रैली से पहले गोभक्त बाबा रूगनाथपुरी डेरी में एकत्र हुए। वहां से रैली के रूप में उपखण्ड कार्यालय पहंुचे व तहसीलदार को चार सूत्रीय मांग पत्र का ज्ञापन सौंपा।

Friday, September 12, 2008

गाय हमारी माता है:-

Marwar News
जालोर ।गाय हमारी माता है। यदि गाय पर कोई संकट आया तो हम मर मिटेंगे। गाय की सेवा करने में ही हमारा समय व्यतीत हो जाता है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से हमारी मांगों पर सकारात्मक कदम नहीं उठाने पर आंदोलन का मार्ग अख्तियार करना पड़ा। ये विचार कामघेनु कल्याण परिषद के राष्ट्रीय संरक्षक और मुख्य वक्ता ज्ञानानंद महाराज ने रावण चबूतरे पर गुरूवार दोपहर को आयोजित सभा के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सरकार कई योजनाओं पर पानी की तरह पैसा बहा रही है, लेकिन गाय के बारे में सोचने का किसी के पास समय नहीं है। हर रोज गोवंश को कत्लखानों में भेजा रहा है, लेकिन उन्हें रोकने वाला व सख्त कार्रवाई करने वाला कोई नहीं है। ऎसे में गोभक्त आंदोलन करना होगा। इस बार इन्द्र के रूठने से अकाल की स्थिति उत्पन्न हो रही है। ऎसे में गाय के लिए अनुदान देना चाहिए। सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। गली-मोहल्लों में गायों की स्थिति दयनीय हो रही है। हालांकि गोभक्तों की कमी नहीं है और गायों के लिए वे समय तैयार रहते हैं, लेकिन पथमेड़ा समेत कई गोशालाओं में लाखों गायों का पालन होता है। ऎसी स्थिति में सरकार का रवैया सहयोगात्मक होना चाहिए, जबकि सत्ता पर आसीन लोगों के पास गोभक्तों की बात सुनने का समय तक नहीं है। इस दौरान पथमेड़ा से संत समुदाय, विश्व हिन्दू परिष्ाद के प्रवीणसिंह नाथावत, रघुनाथसिंह देवड़ा, कल्याणसिंह धानपुर, रतनसिंह भागली, बन्नेसिंह मीठड़ी, छोगसिंह राजपुरोहित सांकरणा, कृष्णपालसिंह सामुजा, आवड़दान और आनंदसिंह समेत कई लोगों ने गोभक्तों से सम्पर्क किया।

Tuesday, December 25, 2007

akhabaron की सुर्खियों में



अखबारों की सुर्खियों में

Monday, December 24, 2007

श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा अखबारों की सुर्खियों में




श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा अखबारों की सुर्खियों में

Sunday, December 23, 2007

श्रीगोधाम की वेबसाईट का लोकार्पण

इस वेबसाईट का निर्माण श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के लिए श्रीबालाजी सॉफ्टेक सांचौर व राव गुमानसिंह रानीवाड़ा के सहयोग से किया जा रहा हैं। यूनिवर्सल वेबसाईट www.pathmedagodarshan.comका निर्माण विभिन्न चरणों में जारी है। श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के द्वारा करवाए जा रहें इवेण्ट्स को देखने के आप http://shrigodham.blogspot.com इस पर लॉग कर सकते है। कृपया देखकर टिप्पणी जरुर करावें।
महोत्सव के अंतिम दिन साध्वी दीदी ऋतंबराजी के करकमलों से श्रीगोधाम की वेबसाईट का विधिवत लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर लोकार्पण कराते साधक रविन्द्रपुरी, प्रेम सुरतानिया, पूनम राजपुरोहित सहित अन्य साधकगण।

श्रीगोधाम में गीता व दत्ताजयंती समारोह


९ वें कामधेनु महोत्सव व अखिल भारतीय गो-संत समागम के कुछ फोटोः-

चार दिन तक चले इस ९ वें कामधेनु महोत्सव व अखिल भारतीय गो-संत समागम में दर्जनों संत-महात्मा सहित शंकराचार्य भी पधारें। भारी तादात में महिलाऒं ने भी भाग लेकर धर्म-लाभ प्राप्त किया।
श्रीगोधाम में गीता व दत्ताजयंती समारोह में हजारों लोगों ने शरीक होकर हिंदुत्व की भावना व गो-हत्या पर पूर्ण पाबंदी को लेकर चलाए जा रहें अभियान में सहयोग प्रदान किया।

Tuesday, December 18, 2007

गो-संवर्धन में प्रगतिः-


श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के पांच गोसेवाश्रमों, श्री गोपाल गोवर्धन, श्री खेतेश्वर गोसेवाश्रम, श्री जलाराम गोसेवाश्रम, और जालोर सिरोही व बनासकांठा के गांवों में प्रतिवर्ष ८ से १० हजार गायों का उन्नत भारतीय देशी नस्ल के सांडों के द्वारा संवर्धन कार्य किया जाता हैं। कामधेनु कल्याण परिवार प्रतिवर्ष १०० उन्नत नस्ल के नन्दी तैयार करके दान करता हैं। गरीब किसानों को भी प्रतिवर्ष ५ सौ जोड़ी बैल सशक्त एवं सुड़ोळ स्वलप शुल्क में उपलब्ध करवाता हैं। श्रीगोधाम महातीर्थ पथमेड़ा ने इस काम को प्राथमिकताके रुप में लेकर समीप के सिरोही जिले के कोल्हापुर में हजार बीघा कृषि भूमि खरीद कर नंदी गोशाला का निर्माण करना शुरु कर दिया हैं। सुंधा के पिछवाड़े स्थित इस अरण्य वन क्षैत्र में साळ में ६ माह ४-५ हजार नंदी स्वछंद विचरण कर प्रकृति का आनन्द लेते हैं। संस्था ने नंदीयों के गो-स्टेड़ियम के निर्माण करनें की कार्य-योजना बनाई हैं।

Monday, December 17, 2007

All India Saint Samagam, Shrigodham Mahatirth, Pathmeda

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Saturday, December 15, 2007

Akhil Bhartiya Saint Samagam



Kamdhenu Sarowar
Shri Godham Mahatirth, Pathmeda

Wednesday, September 5, 2007

गो-संरक्षण का प्रथम चरण



राजस्थान में जालोर, सिरोही, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, नागौर, जोधपुर व बनासकांठा गुजरात क्षैत्र में कुल ५२ गोसेवा आश्रम तथा अन्य अस्थायी ७८ केन्द्रो पर हजारों की संख्या में गोवंश जो अत्यंत कुपोषण का शिकार, लूला, लंगडा, अंधा, रोग-ग्रस्त तथा कसाईयों द्रारा मुक्त कराया गया हैं। इस गोवंश की सेवा संस्था द्वारा की जा रहीं है।संस्था के केन्द्रो में सेवा सामग्री तथा संसाधनो का अभाव हैं। अतः गो भक्तो से निवेदन है कि नियमित सेवा सामग्री, घासचारा, पौष्टिक आहार, औषधि, जल, छाया आदि के स्थाई संसाधनों चिकित्सालयों, गोविश्रामगृह, चारा-भंड़ार, जलकूप, तालाब, जमीन आदि में अपनी शक्ति व सामर्थ के अनुसार सहयोग करना चाहिए। इसी क्रम में दानदाताऒ के सहयोग से संस्था ने सिरोही जिले के कोल्हापुरा, केसुआ व जालोर जिले के केर-धूलिया, पूरण-पंचेरी व सूरजवाड़ा में हजारो बीघा रेतीली जमीन सस्ती दर से खरीद की हैं। जिसमें गो-वंश स्वछंद विचरण करता हैं। उक्त भूखंड़ सुंधामाता पहाड़ के पीछे बाळु रेत के धोरों में आए हुएं हैं।